ईश्वर को अपने भक्तों से जो भी मिलता है उसे वो स्वीकार करते है।
जानते है कैसे ? - हम सब जानते है की ईश्वर अपने भक्त द्वारा भेंट किए गए फूल-पत्तियों और जल को स्वीकार करते हैं और प्रसन्न भी होते हैं, इसका सबसे पहला उल्लेख शिव पुराण में मिलता है।
भगवान शिव और शिकारी की कहानी।
कई हजार साल पहले की घटना है, एक शिकारी पेड़ की शाखा पर बैठा था, उससे अनजाने में शाखा के कुछ पत्ते नीचे स्थापित शिवलिंग पर गिर गए। बस फिर क्या था, भगवान शिव इसी से प्रसन्न हो गए और उस शिकारी को भी अध्यात्म की अनुभूति हुई।
भगवान श्री कृष्ण और उनके भक्तों की कहानी।
जब श्रीकृष्ण धरती पर विचरण करने आए थे, श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में कहा भी है कि वह अपने भक्त द्वारा प्रेम से अर्पित की गई हर चीज को स्वीकार करेंगे।
महाभारत में कुछ ऐसे प्रसंग हैं जब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से मात्र एक दाना चावल ग्रहण किया था और विदुर की पत्नी से केले का छिलका।
ये घटनाएं बताती हैं कि ईश्वर की शख्सियत कुछ ऐसी है जो वे प्रेम से दिया हर तोहफा उतने ही प्रेम से कुबूल करते हैं।
मुमकिन है भगवान सिर्फ अपने भक्त की श्रद्धा को देखते हैं, हम उन्हें तोहफा क्या दे रहे हैं इससे उन्हें कुछ खास फर्क नहीं पड़ता।
मंदिर या घर में साधारण सा भोजन बनाकर अगर हम उसे ईश्वर को अर्पित करते हैं तो वे उसे भी बड़े प्रेम से स्वीकार करते हैं।
जब हम सामान्य से भोजन को ईश्वर के समक्ष रखते हैं तो वह प्रसाद बन जाता है। ईश्वर को भोजन अर्पित करना, ईश्वर को याद करना, उनकी पूजा करना और ईश्वर के प्रति समर्पण दिखाना, यह हमारा मेल है उस परमात्मा के साथ।
बस यही वो कार्य जिससे आप अपने परमात्मा के साथ आध्यात्मिक जुड़ाव स्थापित कर सकते हैं।तो इससे हमें यही पता चलता है की हमें कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए की परमात्मा हमारे साथ नहीं है
बल्कि यह सोचना चाहिए की वो हमारे सामने ना हो कर भी हमारे साथ है और हमेशा साथ रहेंगे तो इसी के साथ अपना विश्वाश बनाये रखे और अपने जीवन मै आगे बढ़ते रहिये।
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